Menu

Hindi Kavita | हिन्दी कविताएँ (मेरा कुसूर क्या था)

 Hindi Kavita | हिन्दी कविताएँ (मेरा कुसूर क्या था)


दोस्तो सुरलहरी ,इस स्कंध में मैने कुछ हिन्दी कविताएँ लिखकर असली जीवन को प्रकट करने कि कोशिश की है |Hindi Poetry किसे अच्छी नहीं लगती |आज कि Hindi Poem उन महान लोगों को स्मर्पित है जो राम  को फिल्मी बता रहे हैं |

मेरा कुसूर क्या था??

Kavita |कविताएँ (मेरा कुसूर क्या था)


हर किसी के दर्द को समझा अपना, 
सब छोड़ कर्म को समझा अपना |
फिर ना जाने मैं गलत क्या था, 
तुम सही हो तो मैं क्या था |


क्या लेखनी सा छिलते रहना जरूरी है, 
आँखें बंद कर घर लुटते देखना जरूरी है |
गर इज्जत उतर रही हो 
तो खामोश रहना जरूरी है |


जी लो जैसे जीते आए हो, 
मैं सही हूँ और सही था |
जो पाया उसी की रज़ा से पाया, 
मुझे कुर्सी पर फ़ितूर ना था |

मेरे व्यवहार में जी हुजूर ना था ,
इस से ज्यादा मेरा कुसूर ना था ||

अन्य कवितायें 


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your comments will encourage me.So please comment.Your comments are valuable for me