हिमाचली कविता | Himachali Kavita (मुसाफिरा)

  हिमाचली कविता | Himachali Kavita  (मुसाफिरा)


हिमाचली कविता | Himachali Kavita  (मुसाफिरा)


मुसाफिरा


कुत्थू जो चलेया मुसाफिरा,कुत्थू ते आया जाणा कुत्थू |

दुनिया दी तिज्जो परवाह नहीं ,उड़दा पंछी बणेया है तू ||


घड़ी भर बई लै दिला दी कई लै,थकेया जेआ लगदा है तू |

पहाड़ाँ दा पाणी बड्डा ही मिट्ठा ,प्यासा मत जाँदा तू ||


माता भी छड्डी पिता भी छड़ेया ,घरे छड्डी नै चलेया तू |

लगदा तू भुक्खा भाह्णा, दुध रोटी खाई लै तू ||


तेरी जोड़िया दा कोई नी मिलणा,किल्ले ही फिरना तू |

पिच्छे दी तू सोच छड्डी दे,कर्मा दा ही खाणा तू ||


रैहणा पिट्ठी भार कर्मां दा,देया ही जन्माँ-जन्माँ दा तू |

सोचणे ते कुछ नी होणा,कदी नी होया कुसी  दा तू |


मंजला पर पौंची नै मेरी भी दस्सेयाँ,गल्लाँ बोलेयाँ सारी तू |

ए जिन्दड़ू इहईयाँ ही चलदा,कल मैं जाणा अज्ज चलेया तू ||


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