Himachali Kavita | हिमाचली कविता (शहरी लोग)

Himachali Kavita | हिमाचली कविता (शहरी लोग)

शहरी लोग

Himachali Kavita | हिमाचली कविता (शहरी लोग)

असाँ दे दिला दी, तुसे नी जाणी सकदे |
कजो गए शहरे च, तुसे नी जाणी सकदे ||


पढ़े लिखे ग्राएं च, सब सिखया ग्राएं च |
कुछ भी करदे होण असे,दिल रैदा ग्राएं च ||
पंज बजे उट्ठी नै घाए जो जाणा |
छल्लियाँ दी रोटी खाणी,छाई दा रेहड़ू बणाणा ||


असाँ दा दर्द तुसे नी जाणी सकदे |
कजो गए शहरे च, तुसे नी जाणी सकदे ||


शहरे दियाँ तंग गलियाँ, ग्राएं दियाँ घाए दियाँ पट्टियाँ |
साफ नदियाँ, बिती सदियाँ, ग्राएं दियाँ हवाँ छड्डियाँ ||
लम्बरे जो जाणा, भेड्डाँ बकरियाँ चराणियाँ |
सारेयां कट्ठे होई कने, हलुआ पकौड़ियाँ बणाणियाँ ||


तुसे सारे बस गल्लाँ ही करी सकदे |
कजो गए शहरे च, तुसे नी जाणी सकदे ||

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