Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi ||कविताएँ
मेरा कुसूर क्या था??
हर किसी के दर्द को समझा अपना,
सब छोड़ कर्म को समझा अपना |
फिर ना जाने मैं गलत क्या था,
तुम सही हो तो मैं क्या था |
क्या लेखनी सा छिलते रहना जरूरी है,
आँखें बंद कर घर लुटते देखना जरूरी है |
गर इज्जत उतर रही हो
तो खामोश रहना जरूरी है |
जी लो जैसे जीते आए हो,
मैं सही हूँ और सही था |
जो पाया उसी की रज़ा से पाया,
मुझे कुर्सी पर फ़ितूर ना था |
मेरे व्यवहार में जी हुजूर ना था ,
इस से ज्यादा मेरा कुसूर ना था ||
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