श्रीमद्भगवतगीता का महत्व | Geeta Ka Mahatav| गीता ज्ञान |Gita Significance(अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोक )
दोस्तों आज के जीवन मे मनुष्य कई कठिनाईयों से गुजर रहा है , वह कई बार फैसले लेने मे असमर्थ होता है ,आप को सही फैसले लेने और सही दिशा दिखने के लिए मैं आप के लिए आज का विचार,सुविचार तथा गीता का महत्व सकन्ध लेकर आई हूँ | Geeta Ka Mahatav हमारे जीवन में बहुत है | हमारे आज के विचार हमारे जीवन पे बड़ा असर डालते हैं | गीता का महत्व हमारे जीवन मे उतना ही है जितना पानी और भोजन का | गीता का महत्व पढ़ें औए दूसरों को सुविचार दें |
गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोक संस्कृत में | गीता महत्व
अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥ (20)
हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ (21)
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् ।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ (22)
योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ (23)
एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम् ॥ (24)
भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् ।
उवाच पार्थ पश्यैतान् समवेतान् कुरूनिति (25)
तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान् ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥ (26)
श्वशुरान् सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान् बन्धूनवस्थितान् ॥ (27)
गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोक हिन्दी में | गीता महत्व
तदन्तर हनुमान से अंकित पताका वाले रथ पर आरूढ़ पाण्डु पुत्र अर्जुन ने धनुष उठाकर तीर चलाने की तैयारी के समय धृतराष्ट्र के पुत्रों को देखकर सर्वस्व ज्ञाता श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे अच्युत! कृपा करके मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खडा़ करें। जिससे मैं युद्धभूमि में उपस्थित युद्ध की इच्छा रखने वालों को देख सकूँ कि इस युद्ध में मुझे किन-किन से एक साथ युद्ध करना है। (20-22)
मैं उनको भी देख सकूँ जो , यहाँ पर धृतराष्ट् के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन के हित की इच्छा से युद्ध करने के लिये इक्ट्ठा हुए हैं। (23)
अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर श्रीकृष्ण जी ने दोनों सेनाओं के बीच में उस उत्तम रथ को खड़ा कर दिया। (24)
इस प्रकार भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण तथा संसार के सभी राजाओं के पास जाकर श्रीकृष्ण जी कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिए एकत्रित हुए इन सभी कुरु वंश के सद्स्यों को देख। (25)
वहाँ अर्जुन ने अपने ताऊओं-चाचाओं , दादों-परदादों , गुरुओं , मामाओं , भाइयों , पुत्रों , पौत्रों और मित्रों को देखा। (26)
कुन्ती-पुत्र अर्जुन ने ससुरों को और शुभचिन्तकों सहित दोनों तरफ़ की सेनाओं में अपने ही सभी सम्बन्धियों को देखा। (27)
---------------------------------------
गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोकों का आज के युग मे महत्व हिन्दी में | गीता महत्व
जब आप सभी ने मन में जीत का प्रण कर लिया है तो एक बार अपनी कमजोरियों और अवगुणों पर भी ध्यान दो | एक बार देख लो कि आप के यह शत्रु कितने बलशाली हैं और आप को किस के साथ युद्ध करना है और उसी के अनुरूप तैयारी रखो |