श्रीमद्भगवतगीता का आज के जीवन मे महत्व | गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोकों का महत्व | गीता ज्ञान |Gita Significance

 श्रीमद्भगवतगीता का आज के जीवन मे महत्व | गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोकों का महत्व | गीता ज्ञान


गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोक संस्कृत में | गीता महत्व


अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः ।
प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥ (20)

हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ (21)

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌ ।
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ (22)

योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः ।
धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ (23)

एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत ।
सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्‌ ॥ (24)

भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्‌ ।
उवाच पार्थ पश्यैतान्‌ समवेतान्‌ कुरूनिति (25)

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ ।
आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥ (26)

श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ।
तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ॥ (27)


गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोक हिन्दी में | गीता महत्व

तदन्तर हनुमान से अंकित पताका वाले रथ पर आरूढ़ पाण्डु पुत्र अर्जुन ने धनुष उठाकर तीर चलाने की तैयारी के समय धृतराष्ट्र के पुत्रों को देखकर सर्वस्व ज्ञाता श्री कृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे अच्युत! कृपा करके मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खडा़ करें। जिससे मैं युद्धभूमि में उपस्थित युद्ध की इच्छा रखने वालों को देख सकूँ कि इस युद्ध में मुझे किन-किन से एक साथ युद्ध करना है। (20-22)

मैं उनको भी देख सकूँ जो , यहाँ पर धृतराष्ट् के दुर्बुद्धि पुत्र दुर्योधन के हित की इच्छा से युद्ध करने के लिये इक्ट्ठा हुए हैं। (23)

अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर श्रीकृष्ण जी ने दोनों सेनाओं के बीच में उस उत्तम रथ को खड़ा कर दिया। (24)

इस प्रकार भीष्म पितामह, आचार्य द्रोण तथा संसार के सभी राजाओं के पास जाकर श्रीकृष्ण जी कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिए एकत्रित हुए इन सभी कुरु वंश के सद्स्यों को देख। (25)

वहाँ अर्जुन ने अपने ताऊओं-चाचाओं , दादों-परदादों , गुरुओं , मामाओं , भाइयों , पुत्रों , पौत्रों और मित्रों को देखा। (26)

कुन्ती-पुत्र अर्जुन ने ससुरों को और शुभचिन्तकों सहित दोनों तरफ़ की सेनाओं में अपने ही सभी सम्बन्धियों को देखा। (27)

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20 to 27 verses of Adhyay 1 of Gita in English| Gita Significance

Then Arjuna, the son of Pandu, mounted on the chariot with the flag marked with Hanuman, lifting the bow and preparing to shoot arrows, seeing the sons of Dhritarashtra, prayed to the all-knowing Shri Krishna and said, O infallible! Please make my chariot stand in the middle of both the armies. So that I can see those who wish to fight present in the battlefield, with whom I have to fight together in this war. (20-22)

May I also see those who have gathered here to fight for the benefit of Duryodhana, the foolish son of Dhritarashta. (23)

On being thus told by Arjuna, Shri Krishna ji made that chariot stand in the middle of both the armies. (24)

In this way, Shri Krishna ji went to Bhishma Pitamah, Acharya Drona and all the kings of the world and said that O Partha! Look at all these members of the Kuru clan assembled for the battle. (25)

There Arjuna saw his paternal uncles, paternal grandparents, teachers, maternal uncles, brothers, sons, grandsons and friends. (26)

Kunti's son Arjuna saw his father-in-law and all his own relatives in the armies on both sides including well-wishers. (27)




गीता के अध्याय 1 के 20 से 27 श्लोकों का आज के युग मे महत्व हिन्दी में | गीता महत्व

जब आप सभी ने मन में जीत का प्रण कर लिया है तो एक बार अपनी कमजोरियों और अवगुणों पर भी ध्यान दो | एक बार देख लो कि आप के यह शत्रु कितने बलशाली हैं और आप को किस के साथ युद्ध करना है और उसी के अनुरूप तैयारी रखो |


Importance of verses 20 to 27 of Gita Chapter 1 in today's era in English I Gita Significance

When all of you have taken a vow of victory in your mind, then pay attention to your weaknesses and demerits as well. See once, how strong are these enemies of yours and with whom you have to fight and prepare accordingly.


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