Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song || हिमाचली गाने ||पराणा कन्ने नौआँ जमाना

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song  || हिमाचली गाने
पराणा कन्ने नौआँ जमाना
        

कल

खातरिया दा पाणी,
तेला दा घाणी, 
डलिया आला लूण,
लकड़िया दी दातुन, 
घट तड़के दी सब्जी खाणी, 
बुखारा च भी कम्मा दी ठाणी,
दस-दस बच्चे जणी नै भी, 
सौ बर्षे तक रैदी थी जवानी ||


हुण

आर ओ दा पाणी,फेरी भी बमारी ,
छाणेआ तेल है, खूना च कोलेस्ट्रोल है, 
आयोडीना आला नमक, रक्तचापा दा जनक, 
टुथपेस्टा दा दम, टुट्टा दे दंद,
चटपटे दी आदत, मोटापे जो दावत, 
दवाइयाँ इतनी सारी, फेरी भी बढ़दी जाँदी बमारी,
जवानिया च रोग, करी चल्लो भोग,

फेेरी कैजो विज्ञान खरा कहाँदा,
फेेरी कैजो विज्ञान खरा कहाँदा,

Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi ||कविताएँ ||रुको और खुद की सुनो

 Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi ||कविताएँ


रुको और खुद की सुनो
दोस्तो इस दुनिया में हर कोई सफल होना चाहता है ,हर कोई अमीर होना चाहता है |पर क्या सभी यह कर पाते हैं ?

क्या कभी आप ने अपने ओफिस मे देर से पहुँचने के लिए बहाने बनाए हैं और एक बहाने के लिए सौ छूठ बोले हैं ?आप में से कई बहाने बनाते होंगे, कुछ ने musculer शरीर बनाने कि सोची, पर कुछ दिन में बहाने बनाना शूरू कर दिए |कुछ ने बजन कम करने कि सोची पर कुछ दिन में ही फिर शरीर और अपने साथ धोखा शुरू कर दिया |

हर जगह कोई न कोई बहाना सोच ही लिया और बचते रहे |
क्या कभी आप ने सोचा कि आप का आस पास आप को नियंत्रित कर रहा है या आप उसे नियंत्रित कर रहे हैं|बहाने बना बना आप इतने कमजोर हो गए हैं कि आप अपनी चाह तक पहुँचने कि बजाए दूर हो गए हैं |

अपने अन्दर कि सुनो |आप क्या बनना चाह रहे थे और इस के लिए क्या करना था और आप के बहानों ने आप को क्या बना दिया |

आप कि इच्छा शक्ति सर्वोपरी है तो खुद कि एक बार तो सुनो |जो चीज़ आप के रास्ते को रोकेगी उस के बारे में एक बार आप के अन्दर से आवाज जरूर आएगी |अगर वह सुन ली तो आप सफल हो गए |नहीं तो सोचते रह जाओगे हाथ में कुछ नहीं आएगा |

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song || मां

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song  || मां 


माँ तेरे पैराँ दी जमीन, माँ तेरे पैराँ दी जमीन |
तेरा सुख ओ ही जाणदे, जो बिन माँ दे यतीम ||


दो पल प्यारा दे भी नी पाई सकदे माई दी छोली |
तेरे चार पैसेयाँ पर होई गए पुत्तर भी लोभी ||
खरे खरे पकवान खाँदे, माँ तरसे टुकड़े जो भी |
पुत्तर पाले दुद्धा ने, तरसा दियाँ पाणिए जो भी ||


माँ सैंदी सारेयां दु:खाँ जो, करी सकदे यकीन |
तेरा सुख ओ ही जाणदे, जो बिन माँ दे यतीम ||


पूरा दिन हाल पुछदी, पुत्र अपणा ही जाया |
माँ पुछदी खाणे जो, चाहे पुत्तर खाई पी ने हो आया ||
कोई हुण पुच्छदा नी, पता नी क्या पाप कमाया |
परिवार तेरे ते गल्लाँ भी सुणदी, कुसी दा नी साया ||


पवित्र हुन्दी माँ दे पैराँ दी जमीन |
तेरा सुख ओ ही जाणदे, जो बिन माँ दे यतीम ||


अप्पूँ सोई कन्ने सिन्ने च, तिजो सुक्के च स्वाया |
तेरियाँ निंदराँ वास्ते, अपना चैन भी गवाया ||
तिज्जो खूब ख्वाया, लिखाया कन्ने पढ़ाया |
मुन्नू चलेया नौकरिया, आँखीं ते आँसू आया ||


माँ तेरे पैराँ दी जमीन, माँ तेरे पैराँ दी जमीन |
तेरा सुख ओ ही जाणदे, जो बिन माँ दे यतीम ||


दूर जे जाणा माऊ,तू ही बोलणा हक्काँ पाई |
चल अम्मा घरे जो, मिंजो प्यारा ने दे रोटी ख्वाई ||
फेरी ही समझणे तू रिस्ते, कम्में नी आणी तेरी कमाई |
दूजेयाँ दे बोलणे पर तू जे कितया, ओ जाणा समझ आई |



क्यों कोई मातृभूमि पर शहीद होता है?

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क्यों कोई मातृभूमि पर शहीद होता है?


फूल जो बीजा था माँ ने मेरी |
खिलते ही उसे अर्पण कर दिया ||
पता नहीं  क्या असर था, परवरिश का |
जो अपने को उसने देश के नाम कर दिया ||

ना मुश्किलें देखीं ना देखी तकलीफ |
रहे हमेशा दुश्मनों के करीब ||
माँ है दूर, भाई से दूर |
बहन की राखी कलाई से दूर ||

जो भी किया देश के लिए किया |
पता नहीं  क्या असर था, परवरिश का |
जो अपने को उसने देश के नाम कर दिया ||

आज में जीता हूँ, कल का ना पता |
मिल भी पाऊँगा परिवार से ना पता ||
ना भी मिल पाया तो इक बात जरूर होगी |
देश के लिए मेरी जान तिरंगे में लिपटी होगी ||

जब तक जीया देश के लिए जिया |
पता नहीं  क्या असर था, परवरिश का |
जो अपने को उसने देश के नाम कर दिया ||

जिस राह से गुज़रूँगा, फूल बिछाएगी दुनिया |
मेरी कुर्बानी को देख, रोएगी दुनिया ||
देश के लिए जान कुर्बान करना ,
आसान नहीं जानेगी दुनिया |

जो लिया वो देश को ही दे दिया |
पता नहीं  क्या असर था, परवरिश का |
जो अपने को उसने देश के नाम कर दिया ||

अन्य कवितायें 

Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi ||कविताएँ || माँ

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माँ


मेरे हँसते चेहरे को देख, वो भी खिलखिला देती है |
जब भी मैं दु:खि होता हूँ, वो भी रो देती है ||


डाँटती है जब मुझे, अन्दर ही अन्दर रोती है |
शरारतों को मेरी देख, मुस्कुरा तू देती है ||
जो चोट खा जाऊँ मैं, दर्द तू ले लेती है |
माँ तो माँ है, मुश्किल में साथ देती है ||


मेरे हँसते चेहरे को देख, वो भी खिलखिला देती है |
जब भी मैं दु:खि होता हूँ, वो भी रो देती है ||


बूढ़ों का मान, सबका सम्मान |
मेरे लिए तू सारा जहान ||
दूसरों कि मदद करना मैने तुझ से सीखा है |
दूनिया में कैसे जीना तुझ से ही सीखा है ||


किसी की मदद बिन सोचे वो करती है |
जब भी मैं दु:खि होता हूँ, वो भी रो देती है ||


बिन माँ जिन्दगी नहीं ,बिना उस के नहीं ज्ञान |
माँ बनाई, क्योंकि हर जगह नहीं हो सकता भगवान |
उसकी डाँट भी प्यार ही मुझे लगती है |
जब भी मैं दु:खि होता हूँ, वो भी रो देती है ||

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song || हिमाचली गाने ||पराणियाँ खेलाँ

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song  || हिमाचली गाने
पराणियाँ खेलाँ

असे जे खेलियाँ, क्या सही नी थियाँ |
हुण जे खेला दे, गेमाँ मोबाइले दियाँ ||


बच्चेयाँ दी रेलगड्डी, आले द्वारे रैणा नट्ठी |
ढाल खेलणी कन्ने, पत्थरे दी बणाणी गड्डी ||
गिट्टियाँ दे खेल, लुक लकैड़े दा नी मेल |
भुल्ले कंच्चे, भुल्ली गए चोर पुलिस कन्ने जेल ||


असे नी दिख्खियाँ, रिमोटे दियाँ गड्डियाँ |
हुण जे खेला दे, गेमाँ मोबाइले दियाँ ||


इक्की जंगे उटकी रैणा, छाही पी नै रज्जि रैणा |
कम करी नै स्कूले जो जाणा, मास्टरा दे डंडे सैहणा ||
खरा होया मास्टरें कुट्टे़या, घरा आलेयाँ सदा कैणाँ |
खेतराँ च कम करणा, गाई दा दुद दूणा ||


असे नी दिख्खियाँ, निन्दराँ दिने दियाँ |
हुण जे खेला दे, गेमाँ मोबाइले दियाँ ||


हुणा दे नी जाणदे, बबरू कन्ने गुलगुलेयाँ |
पलदा, रैन्टा कन्ने मदरेयाँ ||
एनकाँ लग्गी गईयाँ, फोने च लग्गे रहियाँ |
गल मणनी नी, गुस्से च रैहणा पईयाँ ||


असे जे खेलियाँ ओ ही सही थियाँ |
हुण जे खेला दे, गेमाँ मोबाइले दियाँ ||

Hindi Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi || कविताएँ || बाप

Hindi Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi || कविताएँ

बाप 


बाप वह शब्द है, जिस का नहीं है सानी |
माँ तो खास है ही, बाप की सुनो कहानी ||


प्यारा बेटा माँ का, बाप नहीं दुलारता |
क्या इसी से तोल करोगे, बाप के उस प्यार का ||
क्या कहुँ मैं, क्या करूँ ,एैसे इस समाज का |
फर्क पड़ता है, बाप के साथ का ||


किसी ने नहीं कही, बाप कि कोई कहानी |
माँ तो खास है ही, बाप की सुनो कहानी ||


बॉर्डर पर रह के भी, चिट्ठियाँ वो लिखता था |
पढाई  का ध्यान रखना, हर वक्त वो कहता था ||
दो थप्पड़  प्यार से बच्चों को मार देना |
बाप तुमको याद करे, मेरा भी दुलार देना ||


तेरे संग रहने से, नहीं थी कोई हानी |
माँ तो खास है ही, बाप की सुनो कहानी ||


मेरे लिखे पेपरों को, देखता था पढ़ता था |
मेरे बच्चे सा कोई ना, तूने बस यही कहा था ||
डाँटता था मारता था, जोर से पुकारता था |
इसी से सुधरेगा, तू ये सब जानता था ||


बुरी जरूर लगती थी, तेरी वो कठोर वाणी |
बाप वह शब्द है, जिस का नहीं है सानी ||


जिस चीज़ कि चाह थी, उस ने सब ला के दिए |
एैनक नहीं ले सका वो अपनी आँखों के लिए ||
बाप बस जीता है ,अपनों के ही लिए |
पैसे नहीं खर्चे थे, हार्मोनियम के लिए ||


बाप कि महिमा लो सुनो मेरी जुबानी |
माँ तो खास है ही, बाप की सुनो कहानी ||

बाप है तो हर पल, पूरे होते सपने हैं |
बाजार में जो पड़े हैं, वो खिलौने अपने हैं ||
खुद भूखा रह के भी, खाना वो खिला ही देगा |
छुपा के आँसुओं को हमको हँसा ही देगा ||



जन्म देती है माँ, पालता पिता है |
माँ के सुहाग का अहंकार पिता है ||
पिता नहीं तो कुछ भी नहीं |
माँ के गहनों का अलंकार पिता है ||

Best Motivational Speech in Hindi || बेहतरीन प्रेरणादायक स्पीच || गरीब आदमी

Best Motivational Speech in Hindi || बेहतरीन प्रेरणादायक स्पीच ||
गरीब आदमी


आज गाँधी चौक में कुछ खाने पीने का सामान लेने गई थी |वहीं एक मज़दूर खड़ा दिखा, ना तो कुछ खरीद रहा था और ना ही अपनी जगह से हिल रहा था |

मेरी नज़र जैसे ही उस पर पड़ी ,उस के बेजान से शरीर में जैसे फूर्ति का उदगार हो गया हो |वह मेरे पास आकर बोला बहन जी कुछ काम है क्या, कुछ ले के जाना है क्या |मेरे पास कोई काम नहीं होने पर भी मैने सब्जी बाली थैलियां उसे पकड़ा दीं |

घर पहुँचने पर मैंने पूछा, भैया कितने पैसे दूँ |वह बोला बहन जी आप ने बस मेरी बेबसी देखकर मुझे ये थैलियां दे दीं जो आप खुद भी ला सकतीं थीं |कुछ देने कि जरूरत नहीं  |

मैं उसे देखकर सोच में पड़ गई, कितना कुछ है इस गरीब के पास, हम लोग तो धैर्य और इनसानियत ये सब भूल चुके हैं |

मैने फिर भी  उस से पूछा तो वह बोला बहन कुछ खाने को दे दो |मेरा परिवार भूखा है और मैं ही घर पर एक कमाने बाला हूँ |

हम लोग घर पर बच्चों के लिए सब कुछ ईक्ट्ठा कर के रखते हैं और कुछ एैसे भी हैं जिन को जो मिला वो खाया, नहीं मिला तो ना सही |

मैने उसे खाने के सामान देकर पूछा,क्या तुम्हें रोज काम मिल जाता है|तो वह बोला "बहन गरीब हूँ ,पढाई की नहीं, तो मज़दूरी के अलावा कुछ आता नहीं |रोज चौक पर खड़ा रहता हूँ कभी कभार काम मिल जाता है तो उस दिन घर में दीपावली हो जाती है और काम न मिलने पर भी कोई आप जैसा मिल जाता है ,पर मैं भीख नहीं लेता और ना ही माँगता हूँ,क्योकि आज कल लोग मदद के लिए तो आते हैं पर मदद करते करते वीडिओ,फोटो लेकर मजाक बनाकर चले जाते हैं|

मैं एक खुद्दार पिता हूँ ,कोई बार बार आकर मेरी गरीबी का मजाक बनाए या कोई मुझे दया भरी नजरों से देखे यह मुझे मंजूर नहीं |इसीलिए काम करता हूँ और जो मिले उसी से गुजारा करता हूँ |

उस की बात सुनकर मैं अन्दर तक हिल चुकी थी क्योकि मैने भी मदद के बहाने कईयों के फोटो खींचकर मज़ाक बनाया था |आज के आज ही मैने वो सारे वीडिओ और फोटो डिलीट मार दिए |नेकी कर दरिया में डाल ज मेरी समझ में आया था |

गरीब हूँ पर लाचार नहीं, 
खाता हँ हाथों से पका सकूँ वही |
जाने कब समझेगा समाज, 
क्याें उड़ता है हमारा मज़ाक ||


कुछ youtube, so called social workers को मेरी बात कड़बी लगी हो तो माफ करना |

Hindi Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi || कविताएँ ||चालक

Hindi Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi || कविताएँ

चालक


सभी का सम्मान कर रहे, सभी की हो रही प्रसंशा |
चाहे डॉक्टर,पुलिस हो या हो नर्सों कि कार्यक्षमता ||

उन्हें तो किट मिले हैं, उन्हें मिले सबका साथ |
बिमारी से दूर रहें, इलाज में करें पूरा प्रयास ||
पुलिस भी आज खड़ी है, घेरी हुई है पूरी सीमा |
लॉकडाऊन का पालन करवा रहे बहाकर पसीना ||


चिंता नहीं है उन्हें अपनी, झेल रहे गद्दारों कि हिंसा |
चाहे डॉक्टर,पुलिस हो या हो नर्सों कि कार्यक्षमता ||


मैं भी घर से दूर हूँ ,दूर हूँ परिवार से |
पर मिले ना इज्जत इस पढ़े लिखे समाज से ||
मार भी झेल रहा, झेल रहा बिमारी का डर |
सारा सामान पहुँचा दूँगा, रहो अपने अपने घर ||


क्या आप को मेरा काम नहीं जमता |
सभी का सम्मान कर रहे, सभी की हो रही प्रसंशा |


ड्राइविंग सीट मेरा विस्तरा, कैबिन है मेरी रसोई |
बिमारी के चक्कर में,घर बालों से मिलने कि आस भी खोई || गाड़ी में डाल रखे किसी कि भूख, आशा और विश्वास |ड्राइवर हूँ मैं, शायद मैं भी हूँ खास ||


क्यों ,सही नहीं है मेरी कार्यक्षमता |
सभी का सम्मान कर रहे, सभी की हो रही प्रसंशा |

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song || हिमाचली गाने ||शहरी लोग

Himachali Kavita || हिमाचली कविता || Himachali Song  || हिमाचली गाने
शहरी लोग


असाँ दे दिला दी, तुसे नी जाणी सकदे |
कजो गए शहरे च, तुसे नी जाणी सकदे ||


पढ़े लिखे ग्राएं च, सब सिखया ग्राएं च |
कुछ भी करदे होण असे,दिल रैदा ग्राएं च ||
पंज बजे उट्ठी नै घाए जो जाणा |
छल्लियाँ दी रोटी खाणी,छाई दा रेहड़ू बणाणा ||


असाँ दा दर्द तुसे नी जाणी सकदे |
कजो गए शहरे च, तुसे नी जाणी सकदे ||


शहरे दियाँ तंग गलियाँ, ग्राएं दियाँ घाए दियाँ पट्टियाँ |
साफ नदियाँ, बिती सदियाँ, ग्राएं दियाँ हवाँ छड्डियाँ ||
लम्बरे जो जाणा, भेड्डाँ बकरियाँ चराणियाँ |
सारेयां कट्ठे होई कने, हलुआ पकौड़ियाँ बणाणियाँ ||


तुसे सारे बस गल्लाँ ही करी सकदे |
कजो गए शहरे च, तुसे नी जाणी सकदे ||

Hindi Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi || कविताएँ || बिमारी के प्रभाव

Hindi Kavita || Hindi Poetry || Poems in Hindi || कविताएँ

बिमारी के प्रभाव

हाय ये कैसी आई बिमारी |
बिस्तर पर सोए - सोए पीठ दु:ख गई सारी ||


कभी बराम्दे में कभी आँगन में |
कभी सोने में कभी जागन में ||
कभी कुर्सी पर कभी सोफे पर |
कभी बैंच पर कभी धरती पर ||


घड़ी कटती नहीं है सारी |
हाय ये कैसी आई बिमारी |
बिस्तर पर सोए - सोए पीठ दु:ख गई सारी ||


समार्टफोन से थक गए |
टीवी से भी पक गए ||
टाईम न गुजर |
सो सो के भी थक गए ||


घर पर रहना कितना है भारी |
हाय ये कैसी आई बिमारी |
बिस्तर पर सोए - सोए पीठ दु:ख गई सारी ||


घरवाली रहती मीटर दूर |
बच्चे भी रहें दूर दूर ||
रोटी भी दूर से ही खिलाई जाती |
बाहर जाने पर लट्ठ बजाती ||


दुनियां  बनी पड़ी है बेचारी |
हाय ये कैसी आई बिमारी |
बिस्तर पर सोए - सोए पीठ दु:ख गई सारी ||


घर भी रह लेंगे, भूख भी सह लेंगे |
दूर-दूर रहने का दुःख भी सह लेंगे ||
सरकार कि मदद करो, बिमारी से दूर रहेंगे |


हाय ये कैसी आई बिमारी |
बिस्तर पर सोए - सोए पीठ दु:ख गई सारी ||

Hindi Kavita || हिन्दी कविता || Hindi Song || दु:खी दिल

Hindi Kavita || हिन्दी कविता || Hindi Song  || 
दु:खी दिल

दिक्खो यारो कदेही आई बमारी |
मंजे पर बैठे-बैठे पिट्ठ दु:खि गई  सारी ||


कदी बराँडे च, कदी अंगणे च, 
कदी सोणे च कदी जगणे च |
कदी कुर्सिया पर, कदी सोफे पर, 
कदी मंज्जे पर,कदी बिन्ने पर ||


घरें पए ने सारे नर नारी,
दिक्खो यारो कदेही आई बमारी |
मंजे पर बैठे-बैठे पिट्ठ दु:खि गई  सारी ||

समार्टफोने ते भी पक्की गए, 
टीविए दिखी-दिखी अक्की गए |
टैम गुजरी नी करदा, 
सोई -सोई भी थक्की गए ||


घरें रैहणा भी ए बड्डा ही भारी, 
दिक्खो यारो कदेही आई बमारी |
मंजे पर बैठे-बैठे पिट्ठ दु:खि गई  सारी ||


लाड़ी रैंहदी मीटर दूर, 
बच्चे भी रैंदे दूर-दूर |
रोटी भी मीटर दूरे ते सुटदी,
बार जाणेओ बोलदा ताँ सोठे नैं कुटदी ||


इनी बमारिएं दुनियाँ बणाइति बचारी, 
दिक्खो यारो कदेही आई बमारी |
मंजे पर बैठे-बैठे पिट्ठ दु:खि गई  सारी ||

घरें भी रही लैंगे, भुक्ख भी सही लैंगे |
दूर-दूर रैणे दा दु:ख भी सही लैंगे ||
दोस्तों सरकारा दी मदद करा, ताँ ही असे बमारिया ते दूर रैंगे ||


Hindi Kavita || हिन्दी कविता ||Poems in Hindi ||मच्छर

Hindi Kavita || हिन्दी कविता ||Poems in Hindi
मच्छर

क्या होगा श्रिष्टी का, सभी राक्षस एक साथ खड़े है |
करोना वाइरस से लड़ रहे, मच्छर भी तैयार पड़े हैं ||

अभी तक खाँसी, झींक और बुखार से डर था |
मच्छर इंतजार में पड़े, गर्मियों के पल का ||


क्या होगा श्रिष्टी का, सभी राक्षस एक साथ खड़े है |
करोना वाइरस से लड़ रहे, मच्छर भी तैयार पड़े हैं ||


लॉकडाऊन से करोना तो भाग सके है, पर मच्छर इस से भी परे हैं |चुम्बन कभी कभी ले जाते हैं, गालों को सहला जाते हैं ||

उन के चूसक यंत्र भी तैयार पड़े हैं |

क्या होगा श्रिष्टी का, सभी राक्षस एक साथ खड़े है |
करोना वाइरस से लड़ रहे, मच्छर भी तैयार पड़े हैं ||