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Himachali Kavita | हिमाचली कविता (मच्छर मच्छरी)

 Himachali Kavita | हिमाचली कविता (मच्छर मच्छरी)


Himachali Kavita | हिमाचली कविता (मच्छर मच्छरी)


🕸मच्छर - मच्छरी 🕸


मच्छर बोलेया 


मच्छर कने मच्छरिया च होआदी थी गल,

क्या होआदा जमाने च ,कैजो होआदा असाँ कन्ने छल |



हिट ,क्रीमाँ कन्ने क्या क्या आई गया बजारा ,

धुँए नै ही नट्ठी जाँदे थे,कैजो पैओ असाँदी मारा |

दुश्मन कजो होई बैठेआ ,ए जमाना सारा,

इक बूँद खूने नै ही ,भरी जाँदा था पेट महारा  ||


मच्छरी बोली


हे पतिदेव इक दिन ताँ मरना ही आ,टैंशन कैजो लेआदे ,

पर इक गल दसा मिंजो,

साबुन दानिया च साबण,चूहेदानिया च चूहा ,

पर मच्छर दानिया च आदमी कैजो सोआदे ||

असे कन्ने असाँदा परिवार तिल तिल 

मरादे ,

ए उत्तर मिली गया ताँ ही पता चलना ,मित्र महारे दुश्मण कजो होआदे |


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