Himachali Kavita | हिमाचली कविता ( ग्राएँ दी कहाणी)

Himachali Kavita | हिमाचली कविता ( ग्राएँ दी कहाणी)

ग्राएँ दी कहाणी
भ्यागा उट्ठी दातण किती,
नहाई धोई पूजा किती,
तुलसिया जो पाणी देई,
चुल्हे गोलू दित्ता रसोई|
वाह वाह ,क्या ग्राँ दी रीत बणाई,
सारेयाँ दा साथ,सारेयाँ संग प्रीत नभाई ||

छुलाणी च दही छोली ता,
खूब सारा मक्खण कड्डी ता,
भ्यागा भ्यागा गोडें जाई,
मही दा सारा दुध कड्डी ता |
वाह वाह ,क्या ग्राँ दी रीत बणाई,
सारेयाँ दा साथ,सारेयाँ संग प्रीत नभाई ||

दरातिया लई घाए जो जाणा,
दहिए कन्ने फुल्का खाणा,
प्यारा नै रैहणा,प्यारा नै गलाणा,
हत्थ बटाणा सारेयाँ नै जाणा,
वाह वाह ,क्या ग्राँ दी रीत बणाई,
सारेयाँ दा साथ,सारेयाँ संग प्रीत नभाई ||

ग्राएँ नी छड्डी सकदा,ग्राएँ ते दूर नी रही सकदा,
ग्राएँ दी रोटी ,ग्राएँ दा पाणी,
ग्राएँ दी महानता कुन्नी जाणी ||

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शायरी | Chand Shyari

 शायरी  | Chand Shyari


Chand Shyari
चाँद शायरी
1

चाँद को देख रहा हूँ ,चाँदनी बिछड़ी सी है |
अंधेरी रात में रोशनी बिखरी सी है |
चाँद बेचारा बुझा सा है ,
आज कहानी बिसरी सी है ||

2

रात में बाहर निकला,
दिन सा लग रहा है,
आज चाँदनी में नहा रहा है चाँद,
दिल सा लग रहा है|
चाँद था चाँदनी के आगोश  में ,
तभी चाँद खिला सा लग रहा है |

3

चाँद ज्यों-ज्यों चढ़ रहा आकाश में,
यादें ले रहीं मुझे आगोश में |
तेरे साथ कही बैठा था ,
एसी ही एक चाँदनी रात में |
तुझ को देख रहीं थीं नज़रें,
कुछ तो बोल रहीं थी नज़रें,
नज़रों के सागर में गोते लगा,
कुछ तो ढूँढ रही थी नजरें ||






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