Hindi Kavita | हिन्दी कविताएँ (मेरा कुसूर क्या था)

 Hindi Kavita | हिन्दी कविताएँ (मेरा कुसूर क्या था)


दोस्तो सुरलहरी ,इस स्कंध में मैने कुछ हिन्दी कविताएँ लिखकर असली जीवन को प्रकट करने कि कोशिश की है |Hindi Poetry किसे अच्छी नहीं लगती |आज कि Hindi Poem उन महान लोगों को स्मर्पित है जो राम  को फिल्मी बता रहे हैं |

मेरा कुसूर क्या था??

Kavita |कविताएँ (मेरा कुसूर क्या था)


हर किसी के दर्द को समझा अपना, 
सब छोड़ कर्म को समझा अपना |
फिर ना जाने मैं गलत क्या था, 
तुम सही हो तो मैं क्या था |


क्या लेखनी सा छिलते रहना जरूरी है, 
आँखें बंद कर घर लुटते देखना जरूरी है |
गर इज्जत उतर रही हो 
तो खामोश रहना जरूरी है |


जी लो जैसे जीते आए हो, 
मैं सही हूँ और सही था |
जो पाया उसी की रज़ा से पाया, 
मुझे कुर्सी पर फ़ितूर ना था |

मेरे व्यवहार में जी हुजूर ना था ,
इस से ज्यादा मेरा कुसूर ना था ||

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शायरी | दारू पर शायरी

 शायरी  | दारू पर शायरी

दारू पर शायरी

1. 
शायरी  | दारू पर शायरी


हाथों में तेरे मय का प्याला, 
मस्ती में झूमे जा रहा है तू |
ये पीना और पिलाना जिसने सिखाया,

उसे ही घूरे जा रहा है तू ||

2.
शायरी  | दारू पर शायरी

मय जब से तू पीने लगा है, 
असर आँखों पे दिखने लगा है |
मस्ती सी रहती है चाल में तेरी, 

बोतल पे तेरा भी असर दिखने लगा है ||

3.
शायरी  | दारू पर शायरी

खाली ये बोतल, किनारे फैंक कर, 
नहीं पी तूने, बैठा है यह मानकर|
बोतल भरी पड़ी है, अलमारी में, 
ललचाए जा रहा  यह जानकर |
जैसे ही उठाने को हुआ बोतल, 
खड़ा हो भी ना पाया पैरों पर ||

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1.    चाँद शायरी 

2.     मून शायरी 

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